मित्रों ,
मैं एक तुच्छ लघुगात हूँ जो आपके विशाल एवम गौरवशाली समुदाय में प्रवेश करने की धृष्टता कर रह हूँ। मैं बिहार का रहने वाला हूँ और आपनी सभ्यता - असभ्यता, संस्कृति और असंस्कृति से बेहद लगाव रखता हूँ।
जीवन के २३ बसंत देख चूका हूँ और प्रबंधन ( एम् बी ए ) का छात्र हूँ। पढ़ने का रसास्वादन तो बचपन में ही पाना शुरू कर दिया था परन्तु लेखनी पकड़ी नवीं कक्षा में। बस ऐसे ही एक कहानी सी लिख डाली जो दरअसल एक सच्चाई थी। फिर तो जो अनुभूति हुई वो बस अनवरत महसूस करता ही गया और लेखनी कि गति बढ़ती ही गई।
फिर एक दिन बस क्या हुआ ने पता नहीं बस तारीख थी २९ दिसम्बर १९९८ और जगह थी उज्जयनी की एक कार्ड की दुकान, बस वहीं पर मेरे जीवन का एक मोड़ सा आया और मेरी लेखनी को एक नई नोक मिली। और नया रंग आया मेरे लेखनी में। बस दिन रात एक ही सोच और एक ही शक्ल दिल और दिमाग पर छाया रहने लगा। पता ने वो क्या था पर वो खुमारी अब तक नहीं हटी। पर उसका साया मेरे नयनों के सामने से २००४ कि २४ सितम्बर को ही हट गया था। आज के लिए यहीं छोड़ता हूँ। ---------------------------- बाक़ी कल.
Sunday, December 16, 2007
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