Sunday, September 26, 2021

बेटियाँ

 जग से निराली, पिता के आँखों उजियाली

आँगन की खुशहाली, उपवन की हरियाली।
पपीहे की पीक, कोयल की कूक
शशक सी चंचल, चातक सी हलचल।
भँवरे की गुंजन, स्वर में मल्हार
पिता के जीवन प्रांगण की सदाबहार।
जिनके बिन रूखी, थाली की रोटियाँ
ऐसी प्यारी, सबसे दुलारी, फूलों की क्यारी, होती हैं बेटियाँ

Wednesday, September 1, 2021

मिच्छामि दुःक्खदाम


अर्थात, जाने अनजाने, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अगर मेरे किसी व्यवहार से आपको कष्ट अथवा दुःख हुआ हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।


पिछले एक पखवाड़े में मेरे कई जैन और अन्य समुदाय या सम्प्रदाय के लोगों के वॉल पर ये, पोस्ट देखने को मिले।

पर्युषण पर्व के पखवाड़े में सात्विक जीवन एवं विचारों का पालन करते हुए जैन अनुयायी, उत्तम व्यवहार का भी पालन करते हैं और सनातन एवं जैन विचारधाराओं में क्षमा याचना एवं क्षमाशीलता को सर्वोत्तम मानव व्यवहार माना गया है। परंतु दुःख ये होता है कि बिना इसका वास्तविक महत्व जाने, पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया ट्रेंड को फॉलो करते हुए महज सब ये अपने वॉल पर कॉपी पेस्ट या शेयर कर देते हैं।


और पता नहीं बीच में ये अशुद्धि कैसे आ गई, लोग अब जो लिखते हैं वो है, "मिच्छामि दुक्कडम या डुक्कडम"।


बहुत विचारने पर समझ आया कि ये कालांतर में ऐसे हुआ होगा कि हम हिंग्लिश टाइप करते हैं और गूगल कीबोर्ड कहाँ बिचारा दुख और डुख में अंतर जाने। किसी एक ने संभवतः त्रुटि की हो और बाकी सब बस कॉपी पेस्ट में लग गए, जैसा कि सोशल मीडिया की भेड़चाल है।


मित्रों, ये अनुरोध है कि व्यक्त करने से पूर्व अपनी अभव्यक्ति अवश्य परख लें, खास तौर पर जब वो मौलिक न हो। अन्यथा ऐसे ही त्रुटियुक्त ट्रेंड बनेंगे


बाकी अगर किसी की भावना को ठेस पहुची हो तो कृपया

मिच्छामि दुःखदाम


सस्नेह

राहुल दत्त मिश्र

Monday, August 16, 2021

सुभद्रा कुमारी चौहान जयन्ती

 बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी जो, वो हम तक पहुँचानेवाली और देवी रानी लक्ष्मीबाई को हमारे समक्ष साक्षात करने वाली आप ही थीं। मुझे अभी भी 9वीं कक्षा  की हिंदी पुस्तक में आपका चित्र याद है और काफी समय तक झाँसी की रानी की हमारी कल्पना में आप ही मूर्त रहती थीं। 

वीरों के बलिदान को बासंती रंग देने वाली आप एक कवयित्री मात्र नहीं थीं वरन हृदय और व्यक्तित्व से भी एक क्रांतिकारी महिला थीं। 


हिंदी साहित्य में वीर रस की अप्रतिम स्तम्भ और पहली महिला सत्याग्रही को उनके 117वें जन्मदिवस पर शतकोटि नमन

Thursday, March 4, 2021

रेणु जन्मशताब्दी

 'लालपान की बेग़म' की कृपा से आपसे सूक्ष्म साक्षात्कार हुआ। फिर एक दिन, 'पंचलाइट' की रोशनी में 'मैला आँचल'  क्षितिज पर लहराता दिखा। 'एक आदिम रात्रि की महक' महसूस की और कसम से, 'तीसरी कसम' देखते हुए कभी लगा ही नहीं कि आप कोई रचनाकार हो। आप तो जीवन दर्शन का जीवंत स्वरूप प्रतीत होते हो। एकदम से, 'महुआ घटवारिन' जैसी मादकता है आपकी स्याही में। प्रेमचंद जी के बाद किसी से जीवनी मिली हिंदी, आँचलिक साहित्य को तो, वो आपसे।


बाबा नागार्जुन, अज्ञेय, सांस्कृत्यायन जी, निराला और दिनकर जी की पंक्ति में आपको पाता हूँ। जो कुछ भी थोड़ा सीखा, आप सबको पढ़ कर ही सीखा।


जन्मशती पर शत सहस्त्र बार नमन।

4 मार्च 1921-11 अप्रैल 1977

श्री फणीश्वरनाथ जी 'रेणु'