Sunday, September 26, 2021

बेटियाँ

 जग से निराली, पिता के आँखों उजियाली

आँगन की खुशहाली, उपवन की हरियाली।
पपीहे की पीक, कोयल की कूक
शशक सी चंचल, चातक सी हलचल।
भँवरे की गुंजन, स्वर में मल्हार
पिता के जीवन प्रांगण की सदाबहार।
जिनके बिन रूखी, थाली की रोटियाँ
ऐसी प्यारी, सबसे दुलारी, फूलों की क्यारी, होती हैं बेटियाँ

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