बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी जो, वो हम तक पहुँचानेवाली और देवी रानी लक्ष्मीबाई को हमारे समक्ष साक्षात करने वाली आप ही थीं। मुझे अभी भी 9वीं कक्षा की हिंदी पुस्तक में आपका चित्र याद है और काफी समय तक झाँसी की रानी की हमारी कल्पना में आप ही मूर्त रहती थीं।
वीरों के बलिदान को बासंती रंग देने वाली आप एक कवयित्री मात्र नहीं थीं वरन हृदय और व्यक्तित्व से भी एक क्रांतिकारी महिला थीं।
हिंदी साहित्य में वीर रस की अप्रतिम स्तम्भ और पहली महिला सत्याग्रही को उनके 117वें जन्मदिवस पर शतकोटि नमन