Saturday, February 5, 2022

स्वर साम्राज्ञी

 हतप्रभ नहीं हूँ क्योंकि परिवर्तन और नश्वरता ही शाश्वत है। 

अप्रत्याशित भी नहीं हुआ कुछ क्योंकि गत 8-10 दिनों में कदाचित मैं एकमात्र ऐसा नहीं होऊंगा जिसके मन में प्रार्थनाओं के स्वरों के नेपथ्य में कहीं एक भय भी अपना विस्तार कर रहा था।


परन्तु ये दुःखद अवश्य है।

अत्यंत दुःखद। हम सभी के लिए। 


एक बालक जिसको उसके पिता ने माँ की अनुपस्थिति में लोरियाँ लता जी के आवाज में सुनायीं थीं और वो बालक उनकी आवाज़ में अपनी माँ को ढूँढता सो जाता था।


एक प्रेमी या प्रेमिका जिसने विरह और मिलन के पलों को उनकी आवाज़ में प्रदर्शित करने का प्रयास किया था


एक हॉस्टल में रहता बालक उनकी आवाज़ में माँ की ममता के गीत सुनकर अपने घर की यादों में खो जाता था।


एक नई बहू जो उनकोली आवाज़ को उतारने का प्रयास करती थी ताकि ससुराल में उसके पहले परिचय को बल मिले।


नई गायिकाओं के लिए जो उनकी आवाज़ में गाने का अपना पहला प्रयास करती थीं और कदाचित कुछ तो सफल स्थापित भी हो पाईं थीं। 


घर की रसोई में अकेले काम करती हुई गृहणी जो शाम को अपने पति के आने पर कोई नया व्यंजन परोसने वाली हो और गुनगुना रही हो, "आज मदहोश हुआ जाए रे"।


और ऐसे अनगिनत लोग जिन्होंने एकबार भी संगीत सुना हो।


मंदिरों में बजती आरतियाँ हों या 15 अगस्त पर "ऐ मेरे वतन के लोगों" को सुनकर भावुक और जवान हुई पीढ़ी।


एक शोक सब तरफ व्याप्त है।


अरे! रविवार को तो हम सरस्वती माँ की प्रतिमा को भी विसर्जित नहीं करते फिर हमारे लिए साक्षात दृश्य सरस्वती स्वरूप लता जी सरस्वती पूजा के अगले दिन, रविवार को कैसे हम से विदा ले सकती हैं। 


रुँधे कंठ से सरस्वती वंदना करते हुए आज माता के8 आरती उतारी। सामने माता की प्रतिमा और मस्तिष्क में लता जी का स्वर गूँज रहा था। आपके पार्थिव शरीर के अवसान के साथ साथ मेरे उस स्वप्न का भी अंत हो गया जिसमें मैंने सोचा था कि कदाचित एक बार आपके चरण स्पर्श का अवसर मिल पाए।


हमारे हर पल, हर क्षण और हर उत्सव को ध्वनि देने वाली स्वर साम्राज्ञी, स्वर की देवी को प्रणाम और श्रद्धांजलि। संगीत ईश्वर की आराधना का स्वरूप है, इसी विश्वास के साथ मुझे आशा है कि ईश्वर आपको परमगति प्रदान करेंगे। 


सादर


29 सि. 1929- 06 फ़. 2022


-राहुल दत्त मिश्र ©