तुम्हारी हंसी,
खिलते फूलों सी नाज़ुक तुम्हारी हंसी,
कितनी प्यारी लगती है, प्यारी तुम्हारी हंसी
सवेरे की किरणों सी निश्च्छल है ये,
चाँदनी से भी मादक तुम्हारी हंसी
बिजलियों जैसी चमकीली भड़कीली है ये,
चूड़ियों सी खन खन तुम्हारी हंसी
निगाहें तो घायल करती मगर,
लूट लेती दिलों को तुम्हारी हंसी
तमन्ना है यूँ ही तुम हंसती रहो
देखते ही रहे हम तुम्हारी हंसी.
मित्रों ये मेरी एक प्रिय कविता है जो किसी अज्ञात कवि की है.