Wednesday, September 1, 2021

मिच्छामि दुःक्खदाम


अर्थात, जाने अनजाने, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अगर मेरे किसी व्यवहार से आपको कष्ट अथवा दुःख हुआ हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।


पिछले एक पखवाड़े में मेरे कई जैन और अन्य समुदाय या सम्प्रदाय के लोगों के वॉल पर ये, पोस्ट देखने को मिले।

पर्युषण पर्व के पखवाड़े में सात्विक जीवन एवं विचारों का पालन करते हुए जैन अनुयायी, उत्तम व्यवहार का भी पालन करते हैं और सनातन एवं जैन विचारधाराओं में क्षमा याचना एवं क्षमाशीलता को सर्वोत्तम मानव व्यवहार माना गया है। परंतु दुःख ये होता है कि बिना इसका वास्तविक महत्व जाने, पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया ट्रेंड को फॉलो करते हुए महज सब ये अपने वॉल पर कॉपी पेस्ट या शेयर कर देते हैं।


और पता नहीं बीच में ये अशुद्धि कैसे आ गई, लोग अब जो लिखते हैं वो है, "मिच्छामि दुक्कडम या डुक्कडम"।


बहुत विचारने पर समझ आया कि ये कालांतर में ऐसे हुआ होगा कि हम हिंग्लिश टाइप करते हैं और गूगल कीबोर्ड कहाँ बिचारा दुख और डुख में अंतर जाने। किसी एक ने संभवतः त्रुटि की हो और बाकी सब बस कॉपी पेस्ट में लग गए, जैसा कि सोशल मीडिया की भेड़चाल है।


मित्रों, ये अनुरोध है कि व्यक्त करने से पूर्व अपनी अभव्यक्ति अवश्य परख लें, खास तौर पर जब वो मौलिक न हो। अन्यथा ऐसे ही त्रुटियुक्त ट्रेंड बनेंगे


बाकी अगर किसी की भावना को ठेस पहुची हो तो कृपया

मिच्छामि दुःखदाम


सस्नेह

राहुल दत्त मिश्र

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