Thursday, January 10, 2019

स्व. श्री रविन्द्र कालिया की पुण्यतिथि पर

स्मृति से
2016-
सुबह सुबह अखबार के पहले पन्ने पर चार पंक्तियों का एक समाचार देखा। हृदय कचोट गया पढ़ कर। श्री रविन्द्र कालिया नहीं रहे। मृत्यु एक अवांछित नियति है पर हृदय के कचोटने का कारण वस्तुतः कुछ और ही था। हिंदी के इतने बड़े सुप्रसिद्ध कहानीकार और भारतीय ज्ञानपीठ के प्रमुख रहे व्यक्ति के निधन का हिंदी मीडिया में इतना छोटा उल्लेख। जहां आज हिंदी मीडिया का नेतृत्व करनेवाले टी वी चैनल और अखबार में त्रुटियों की भरमार होती है, उन भाषा के कथित ठेकेदारों से और अपेक्षा भी क्या है। आज हिंदी भाषा और साहित्य के निम्नतर स्तर पर आने का कारण भी यही है। आज की पीढ़ी हिंदी बोलना भी हीन समझती है और जो चाहते हैं उन्हें शुद्ध हिंदी भाषा का ज्ञान ही नहीं।

जबसे हिंदी साहित्य से जुड़ा, वागर्थ(हिंदी मासिक), ने बड़ा मार्गदर्शन किया। मेरे लिए तो ज्ञानपीठ का पर्याय उस समय श्री कालिया ही थे। नौ साल छोटी पत्नी, और ऐसी न जाने कितनी ही पुस्तकें और कथाएं। श्री कालिया एक लेखक ही नहीं, एक संयोजक भी थे।

मेरा नमन् उनको। ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे।

श्री रविन्द्र कालिया(1-4-1939 से 9-1- 2016)

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