Tuesday, June 17, 2025
प्राण प्रवाह
Saturday, February 5, 2022
स्वर साम्राज्ञी
हतप्रभ नहीं हूँ क्योंकि परिवर्तन और नश्वरता ही शाश्वत है।
अप्रत्याशित भी नहीं हुआ कुछ क्योंकि गत 8-10 दिनों में कदाचित मैं एकमात्र ऐसा नहीं होऊंगा जिसके मन में प्रार्थनाओं के स्वरों के नेपथ्य में कहीं एक भय भी अपना विस्तार कर रहा था।
परन्तु ये दुःखद अवश्य है।
अत्यंत दुःखद। हम सभी के लिए।
एक बालक जिसको उसके पिता ने माँ की अनुपस्थिति में लोरियाँ लता जी के आवाज में सुनायीं थीं और वो बालक उनकी आवाज़ में अपनी माँ को ढूँढता सो जाता था।
एक प्रेमी या प्रेमिका जिसने विरह और मिलन के पलों को उनकी आवाज़ में प्रदर्शित करने का प्रयास किया था
एक हॉस्टल में रहता बालक उनकी आवाज़ में माँ की ममता के गीत सुनकर अपने घर की यादों में खो जाता था।
एक नई बहू जो उनकोली आवाज़ को उतारने का प्रयास करती थी ताकि ससुराल में उसके पहले परिचय को बल मिले।
नई गायिकाओं के लिए जो उनकी आवाज़ में गाने का अपना पहला प्रयास करती थीं और कदाचित कुछ तो सफल स्थापित भी हो पाईं थीं।
घर की रसोई में अकेले काम करती हुई गृहणी जो शाम को अपने पति के आने पर कोई नया व्यंजन परोसने वाली हो और गुनगुना रही हो, "आज मदहोश हुआ जाए रे"।
और ऐसे अनगिनत लोग जिन्होंने एकबार भी संगीत सुना हो।
मंदिरों में बजती आरतियाँ हों या 15 अगस्त पर "ऐ मेरे वतन के लोगों" को सुनकर भावुक और जवान हुई पीढ़ी।
एक शोक सब तरफ व्याप्त है।
अरे! रविवार को तो हम सरस्वती माँ की प्रतिमा को भी विसर्जित नहीं करते फिर हमारे लिए साक्षात दृश्य सरस्वती स्वरूप लता जी सरस्वती पूजा के अगले दिन, रविवार को कैसे हम से विदा ले सकती हैं।
रुँधे कंठ से सरस्वती वंदना करते हुए आज माता के8 आरती उतारी। सामने माता की प्रतिमा और मस्तिष्क में लता जी का स्वर गूँज रहा था। आपके पार्थिव शरीर के अवसान के साथ साथ मेरे उस स्वप्न का भी अंत हो गया जिसमें मैंने सोचा था कि कदाचित एक बार आपके चरण स्पर्श का अवसर मिल पाए।
हमारे हर पल, हर क्षण और हर उत्सव को ध्वनि देने वाली स्वर साम्राज्ञी, स्वर की देवी को प्रणाम और श्रद्धांजलि। संगीत ईश्वर की आराधना का स्वरूप है, इसी विश्वास के साथ मुझे आशा है कि ईश्वर आपको परमगति प्रदान करेंगे।
सादर
29 सि. 1929- 06 फ़. 2022
-राहुल दत्त मिश्र ©
Sunday, September 26, 2021
बेटियाँ
जग से निराली, पिता के आँखों उजियाली
Wednesday, September 1, 2021
मिच्छामि दुःक्खदाम
अर्थात, जाने अनजाने, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अगर मेरे किसी व्यवहार से आपको कष्ट अथवा दुःख हुआ हो तो कृपया मुझे क्षमा करें।
पिछले एक पखवाड़े में मेरे कई जैन और अन्य समुदाय या सम्प्रदाय के लोगों के वॉल पर ये, पोस्ट देखने को मिले।
पर्युषण पर्व के पखवाड़े में सात्विक जीवन एवं विचारों का पालन करते हुए जैन अनुयायी, उत्तम व्यवहार का भी पालन करते हैं और सनातन एवं जैन विचारधाराओं में क्षमा याचना एवं क्षमाशीलता को सर्वोत्तम मानव व्यवहार माना गया है। परंतु दुःख ये होता है कि बिना इसका वास्तविक महत्व जाने, पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया ट्रेंड को फॉलो करते हुए महज सब ये अपने वॉल पर कॉपी पेस्ट या शेयर कर देते हैं।
और पता नहीं बीच में ये अशुद्धि कैसे आ गई, लोग अब जो लिखते हैं वो है, "मिच्छामि दुक्कडम या डुक्कडम"।
बहुत विचारने पर समझ आया कि ये कालांतर में ऐसे हुआ होगा कि हम हिंग्लिश टाइप करते हैं और गूगल कीबोर्ड कहाँ बिचारा दुख और डुख में अंतर जाने। किसी एक ने संभवतः त्रुटि की हो और बाकी सब बस कॉपी पेस्ट में लग गए, जैसा कि सोशल मीडिया की भेड़चाल है।
मित्रों, ये अनुरोध है कि व्यक्त करने से पूर्व अपनी अभव्यक्ति अवश्य परख लें, खास तौर पर जब वो मौलिक न हो। अन्यथा ऐसे ही त्रुटियुक्त ट्रेंड बनेंगे
बाकी अगर किसी की भावना को ठेस पहुची हो तो कृपया
मिच्छामि दुःखदाम
सस्नेह
राहुल दत्त मिश्र
Monday, August 16, 2021
सुभद्रा कुमारी चौहान जयन्ती
बुन्देले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी जो, वो हम तक पहुँचानेवाली और देवी रानी लक्ष्मीबाई को हमारे समक्ष साक्षात करने वाली आप ही थीं। मुझे अभी भी 9वीं कक्षा की हिंदी पुस्तक में आपका चित्र याद है और काफी समय तक झाँसी की रानी की हमारी कल्पना में आप ही मूर्त रहती थीं।
वीरों के बलिदान को बासंती रंग देने वाली आप एक कवयित्री मात्र नहीं थीं वरन हृदय और व्यक्तित्व से भी एक क्रांतिकारी महिला थीं।
हिंदी साहित्य में वीर रस की अप्रतिम स्तम्भ और पहली महिला सत्याग्रही को उनके 117वें जन्मदिवस पर शतकोटि नमन
Thursday, March 4, 2021
रेणु जन्मशताब्दी
'लालपान की बेग़म' की कृपा से आपसे सूक्ष्म साक्षात्कार हुआ। फिर एक दिन, 'पंचलाइट' की रोशनी में 'मैला आँचल' क्षितिज पर लहराता दिखा। 'एक आदिम रात्रि की महक' महसूस की और कसम से, 'तीसरी कसम' देखते हुए कभी लगा ही नहीं कि आप कोई रचनाकार हो। आप तो जीवन दर्शन का जीवंत स्वरूप प्रतीत होते हो। एकदम से, 'महुआ घटवारिन' जैसी मादकता है आपकी स्याही में। प्रेमचंद जी के बाद किसी से जीवनी मिली हिंदी, आँचलिक साहित्य को तो, वो आपसे।
बाबा नागार्जुन, अज्ञेय, सांस्कृत्यायन जी, निराला और दिनकर जी की पंक्ति में आपको पाता हूँ। जो कुछ भी थोड़ा सीखा, आप सबको पढ़ कर ही सीखा।
जन्मशती पर शत सहस्त्र बार नमन।
4 मार्च 1921-11 अप्रैल 1977
श्री फणीश्वरनाथ जी 'रेणु'
Sunday, August 2, 2020
साकार
स्वच्छ, रैखिक आकाशगंगा सम मांग,
मध्य निर्भीक धवल चंद्र, सम मुख
और चंद्र की उभारों के समान तेरे नाक- नक्श।
सुना था कोई लाल परी, चरखा काटती,
बैठी है चंद्र की कहानियों में,
तेरे अधरों की लाली, उसी का
आभास दिलाती है, विचारों में!
गिरें पलकें, सावन के मेघ घुमड़ते हुए,
दौड़े आते हों, पृथ्वी को अपनी आग़ोश में लेने
और उठें, तो जैसे स्वच्छ चाँदनी
फैली ही चारो ओर नील- सरोवर के।
मेरे मन का तूफ़ान, तेरी सांसो
के उतार चढ़ाव में झलके
जब मैं आऊँ तेरे पास और
संकोचवश जब तू, बंद कर ले पलकें।
तेरा चाँदी सा रंग, हो जाए गुलाबों सा
मुख हो जाए सघन रक्त
ज्यों सूर्य की प्रथम किरण
हिमालय के हिम् पर हो गई हो आसक्त।
इतना भी नहीं ज्ञात इस अज्ञानी को
की तेरे इस अप्रतिम सौंदर्य की सीमा क्या है,
मैं तो जब भी तेरे सन्मुख होता हूँ
मानो लगता है कि हर पलक के साथ
तेरा चेहरा एकदम नया है
मुझ मूढ़ को तो प्रेम की परिभाषा
तक का ज्ञान नहीं
मैं क्या करूँगा तेरे इस दैवीय सौंदर्य की उपासना
मुझे तो इन जड़-भौतिक संरचनाओं
की भक्ति तक का ज्ञान नहीं।
तुम यथार्थतः ही एक जीवंत चमत्कार हो
ईश्वर की परिकल्पना उन्हें साकारती है
तुम तो स्वयं ही इस निःसार जगत में
एकमात्र स्वतः साकार हो।