Saturday, December 27, 2008

तुलसी

मित्रों यह है मेरी पहली कविता, जो मैंने हेमंत कुकरेती जी के सिल-बट्टा शीर्षक को पढ़ कर लिखी थी। मुझे उस कविता से बड़ी प्रेरणा मिली की हम कविता आपनी रोज-मर्रा की और आस- पास की चीजों पर भी बड़ी आसानी से लिख सकते हैं। इसके पूर्व मैंने सिर्फ़ कहानियाँ ही लिखी थी। कविता के रूप मेरा मेरा यह पहला प्रयास कैसा था ज़रूर लिखें।

मुझे याद है,
पिताजी कहते थे,
"इसकी पत्तियों का सेवन रोग मुक्ति करक है"।

माँ कहती थी,
"इसकी जड़ों में पानी डालना सुख- संपत्ति करक है"।

दादाजी कहते थे,
"इसकी शाखाएं पिरो कर पहनना,
इश्वर प्राप्ति का कारक है"।

आज इस घने अथाह झाड़ को
देखकर, इस पोसोपेश में हूँ,
"आख़िर सफाई के लिए इसके किस अंग को छाटूं,

जो की मेरे लिए आकारक है।"

1 comment:

Anonymous said...

it is a wonderful feeling i have got after reading your first poem,not because i know you,just because this is one of the best poem i have ever read because i was also writing poems in my school days so i can know the feeling which you had at that time.DEEPAK(IBA,BANGALORE)